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Thursday 27 June 2019

Manikarnika Queen of Jhansi Story In Hindi || झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की BIOGRAPHY


Manikarnika Queen of Jhansi Story In Hindi || झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की BIOGRAPHY

दोस्तों आज हम एक एसी साहसी महिला की बात करने जा रहा हु जिसने भारत की सवतंत्रा मे अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी|और अपने राज्य झाँसी की स्वतंत्रता के लिए ब्रिटिश राज्य के खिलाफ लड़ने का साहस किया और अंत मे वीरगति को प्राप्त हुई दोस्तों हम जिसकी बात करने जा रहे है|वो है रानी लक्ष्मीबाई जो मराठा शाषित झांसी राज्य की रानी थी और सन 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम मे अंग्रेजी हुकुमत के विरुद्ध आवाज उठाने वाली पहली महिला थी|वे एसी वीरांगना थी जिन्होने मात्र 23 वर्ष की आयु मे ही ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ आंदोलन की तो दोस्तों चलिए उस साहसी महिला की लाइफ को हम शुरू से जानने की कोशिस करते है|

रानी लक्ष्मीबाई की सुरुवाती जीवन

दोस्तों रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवंबर 1828 को वाराणसी जिले के एक मराठी ब्रह्माण्ड परिवार मे हुआ था|उनके बचपन का नाम मणिकर्णिका था लेकिन परिवार वाले उन्हें मनु कहकर पुकारते थे|उनके पिता का नाम मोरोपंत ताम्बे था और माता का नाम भागीरथी सप्रे था|

रानी लक्ष्मीबाई की शिक्षा

रानी लक्ष्मीबाई ने पढ़ाई के साथ साथ आत्मा रक्षा, घुड़सवारी ,निसनेबाज़ी, और ,घेराबंदी,का प्रसिक्छण मे महारत हासिल की थी

रानी लक्ष्मीबाई का विवाह

रानी लक्ष्मीबाई जब 4 साल की हुई तो उनकी माता की मृत्यु हो गई| फिर उनके पिता ने रानी लक्ष्मीबाई की पूरी जवाबदारी संभाली|उनके पिता मराठा बिजिराव की सेवा मे थे फिर उनके पिता ने रानी लक्ष्मीबाई को बाजीराव मे ले गए|वहां मनु के स्वभाव ने सबका मन मोह लिया और लोग उसे प्यार से छबीली कहने लगे फिर इसी दौरान 1842 मे लक्ष्मीबाई का विवाह झाँसी के राजा गंगाधर राव निम्बालकर के साथ हुई और इस प्रकार वे झांसी की रानी बन गई|फिर रानी लक्ष्मीबाई का एक पुत्र भी हुआ जिसका नाम उन्होंने दामोदर राव रखा| लेकिन वह दुर्भाग्यवस वह मात्र 4 माह ही जीवित रह सका|फिर गंगाधर राव का भी तबीयत खराब होने लगा और 21 नवंबर 1853 को गंगाधर राव की मृत्यु हो गई

झाँसी पर अंग्रेजो का कब्ज़ा

राजा की मृत्यु के बाद रानी लक्ष्मीबाई ने राज्य का उत्तरदाईत्व संभाला | लेकिन उस समय यह नियम था की राज्य का उत्तरदित्व सिर्फ राजा के पुत्र को ही मिलेगा पुत्र ना होने पर राज्य ईस्ट इंडिया कंपनी के कब्जे मे आ जाएगा|फिर रानी लक्ष्मीबाई ने एक बच्चे को गोद लिया लेकिन ईस्ट इंडिया कंपनी ने गोद लिए बच्चे को राज्य का उत्तराधिकारी बनाने से इंकार कर दिया फिर रानी लक्ष्मीबाई ने लन्दन मे ब्रिटिश सरकार के खिलाफ मुकदमा दायर किया लेकिन उनके मुकदमे को ख़ारिज कर दिया गया फिर 7 मार्च 1854 को झाँसी पर अंग्रेजो का अधिकार हो गया|

अंग्रेजो ने रानी लक्ष्मीबाई को झाँसी सौपा

झाँसी पर अंग्रेजो का अधिकार होने पर रानी लक्ष्मीबाई ने झाँसी देने से इंकार कर दिया और कहा मे झाँसी नहीं दूँगी फिर आंदोलन शुरू हो गया|फिर रानी लक्ष्मीबाई ने सेना का गठन किया जिसमे पुरुषो के साथ साथ महिलाये भी शामिल थी जिन्हे अंग्रेजो के खिलाफ लड़ने के लिए प्रशिक्षण दिया गया|उनके सेना मे एक से बढकर एक महारथी थे|उनकी सेना मे लगभग 1400 सैनिक थे|फिर 10 मई 1857 को अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह शुरू हो गया| इसी दौरान अंगेजो ने बंदूकों के कारतूसों मे सुवर और गाय की चर्बी का इस्तेमाल करने लगे जिस कारण से पूरे देश मे आक्रोश फैल गया फिर अंग्रेजो के ना चाहते हुए भी इस विद्रोह को रोकना पड़ा और झांसी को रानी लक्ष्मीबाई को सौपना पड़ा

फिर से हुआ झांसी पर अंग्रेजो का कब्ज़ा

फिर 1857 मे उनके पडोसी राज्य ओरछा और दतिया ने झांसी पर हमला किया लेकिन वह सफल नहीं हो सके और रानी लक्ष्मीबाई ने अपनी बहादुरी का परिचय देते हुए जीत हासिल की फिर मार्च 1858 को अंग्रेजो ने झांसी को हड़पने के लिए झांसी पर हमला कर दिया लेकिन रानी लक्ष्मीबाई झांसी को बचाने मे नाकामियाब रही और झांसी अंग्रेजी के कब्जे मे हो गया

काल्पी पर अंग्रेजो का आक्रमण

झांसी पर अंग्रेजो का कब्ज़ा होने के बाद रानी लक्ष्मीबाई अपने सेना के साथ काल्पी पहुंची| जहाँ पर तात्या टोपे ने रानी लक्ष्मीबाई की मदद की| फिर 22 मई 1858 को अंग्रेजी शासक सर हुय रोज ने काल्पी पर हमला कर दिया लेकिन इस बार रानी लक्ष्मीबाई बाई ने अंग्रेजो को धूल चटआ दी फिर वही हर के कुछ समय बाद अंग्रेजो ने काल्पी पर फिर से आक्रमण कर दिया और काल्पी पर कब्ज़ा कर लिया|

रानी लक्ष्मीबाई का ग्वालियर पर अधिकार

काल्पी की लड़ाई मे मिली हर के बाद राव साहेब पेशवा बन्दा के नवाब, तात्या टोपे और अन्य मुख्य योद्धाओ ने रानी लक्ष्मीबाई को ग्वालियर पर अधिकार प्राप्त करने का सुझाव दिया और जिसमे रानी लक्ष्मीबाई ने जीत हासिल की जीत हासिल करने के बाद रानी लक्ष्मीबाई ने ग्वालियर को पेशवा को सौप दिया

रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु

फिर 17 जून 1858 को ग्वालियर के पास कोटा की सराय मे ब्रिटिश सेना से लड़ते लड़ते रानी लक्ष्मीबाई वीरगति को प्राप्त हो गई|

तो दोस्तों ये थी रानी लक्ष्मीबाई की जीवन कहानी उम्मीद करता हु आपको अच्छी लगी होगी अपना बहुमूल्य समय देने के लिए धन्यवाद ........

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