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Sunday 30 June 2019

Parle-G आजादी के पहले से चला आ रहा है ये बिस्कुट || Parle G history in hindi

Parle-G आजादी के पहले से चला आ रहा है ये बिस्कुट || Parle G history in hindi


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भारत मे आज शायद ही ऐसा कोई होगा जिसने Parle-G का नाम ना सुना होगा | यही वो बिस्कुट है जो आजादी के पहले से लोगो की चाय का साथी बना हुआ है | आज बच्चे से लेकर बूढ़े तक हर किसी के लिए ये खास है | आखिर अपने भी इस बिस्कुट को तो खाया होगा ओर लोगो की कितनी ही यादें इस बिस्कुट से जुडी हुई है | Parle-G वो पहला बिस्कुट था जो भारत मे बना ओर भारत के आम नागरिकों के लिए बना | तो दोस्तों जानते है आखिर कैसे Parle- G बना देश का बिस्कुट |


Parle कंपनी की सुरुवात कैसे हुई?
Parle-G आज या कल का नहीं बल्कि कई सालो पुराना प्रोडक्ट है | भारत की आजादी के पहले ही इसकी नीव रखी गई थी | ओर दोस्तों आपको जान कर हैरानी होंगी की जिसे आप अभी Parle-G के नाम से जानते है उसका नाम पहले Parle-G नहीं बल्कि Parle- Gluco था |

भारत की आजादी से पहले देश मे अंग्रेजो का दबदबा था | ओर ब्रिटिश चीज़ो का प्रचलन भी काफ़ी ज्यादा था जिसे सिर्फ अमीर लोग ही खरीद सकते थे |उस समय भारत मे अंग्रेजो द्वारा कैंडी लाई गई थी | मगर वो भी सिर्फ अंग्रेजो तक ही  सिमित थी |

Parle कम्पनी की शुरुवात किसने की? 

ये बात मोहन लाल दयाल को पसंद नहीं आई वे स्वदेशी आंदोलन से काफ़ी प्रभावित थे | ओर इस भेदभाव को खत्म करने के लिए उन्होंने उसका ही सहारा लिया | उन्होंने सोच लिया था की भारतीयो के लिए वे भारत मे बनी ही कैंडी लायेंगे ओर भारतीय भी इसका मज़ा ले सकेंगे |

इसके लिए वे जर्मनी निकल गए वहा उन्होंने कैंडी बनाना सीखा ओर 1929 मे 60,000 रुपए मे कैंडी मशीन की अपने साथ भारत लेकर आए यू तो मोहन लाल दयाल का खुद का रेशम का व्यापार था | लेकिन फिर भी उन्होंने भारत आकर एक नया व्यापर प्रारम्भ किया |

Parle कम्पनी कहा पर स्थित है? 
मोहन लाल दयाल ने मुंबई के पास स्थित वीले पर्ला मे एक पुरानी सी फैक्ट्री खरीदी | कंपनी के पास शुरुवात मे सिर्फ 12 कर्मचारी ही थे | और ये सब भी मोहन लाल दयाल के परिवार वाले ही थे उन सब ने मिलकर दीन रात एक किया और उस पुरानी सी फैक्ट्री को एक नया रूप दिया |

Parle कंपनी का नाम Parle कैसे पड़ा? 
हर कोई कंपनी को बनाने मे इतना व्यस्त हो गया था की उन्होंने ये भी नहीं सोचा की आखिर इसका नाम क्या रखा जाए ज़ब कोई भी नाम समझ नहीं आया तो आखिर मे कंपनी का नाम उस जगह के नाम पर रखा गया जहाँ उसकी शुरुवात हुई थी कंपनी वीले पार्ला मे खोली गई थी | इसलिय इसका नाम थोड़े बदलाव के साथ पार्ले रखा गया | इसके बाद फैक्ट्री मे जो सबसे पहली चीज बनाई गई थी | वो थी एक ऑरेंज कैंडी | इतना ही नहीं इस कैंडी को लोगो द्वारा काफ़ी पसंद भी किया गया |

Parle-Gluco की शुरुवात कब हुई? 
उस समय अंग्रेज अपनी चाय के साथ बिस्कुट खाया करते थे मगर वो भी सिर्फ अमीरों तक ही सिमित थी | इसलिए मोहन लाल दयाल ने सोचा की क्यू ना कैंडी की तरह ही बिस्कुट भी भारत मे ही बनाया जाए | इसके बाद 1939 मे उन्होंने शुरुवात की Parle-Gluco की गेहूं से बना ये बिस्कुट इतने कम दाम मे था की अधिकांश भारतीय इसे खरीद सकते थे |

इसका सिर्फ दाम ही कम नहीं था | बल्कि इसका स्वाद भी काफी बढ़िया था | देखते ही देखते आम लोगो के बिच ये बिस्कुट काफी प्रसिद्ध होने लगा | माना जाता है की ना सिर्फ भारतीय कई ब्रिटिश भी Parle-Gluco का स्वाद लिया करते थे |

Parle-Gluco इतनी तेजी से आगे बड़ा की मार्केट मे मौजूद ब्रिटिश ब्रांड के बिस्कुट पीछे होने लगे | हर कोई इसकी पॉपुलेरेटी के आगे झुकने लगा था |

Parle-Gluco ने अपना प्रोडक्शन बंद क्यू किया था? 
द्रितीय विश्व युद्ध खत्म होने के बाद Parle-Gluco एक काफ़ी बड़ा ब्रांड बन चूका था | हालांकि विश्व युद्ध ख़त्म होने के बाद Parle-Gluco को अपना प्रोडक्शन बंद करना पड़ा था | ऐसा नहीं था की कंपनी घाटे मे चल रही थी या उसके पास प्रोडक्शन के लिए पैसे नहीं थे |

प्रोडक्शन बंद करने की असली वजह थी देश मे गेहूं की कमी जैसे ही भारत 1947 मे अंग्रेजो के राज से आजाद हुआ और देश का विभाजन हुआ तो ये कमी और भी बढ़ गई Parle कंपनी को इतना raw मटेरिअल नहीं मील पा रहा था की प्रोडक्शन जारी रख सके | ऐसे मे कुछ वक़्त के लिए उन्हें अपना प्रोडक्शन रोकना पड़ा |

प्रोडक्शन रोकने के कुछ समय बाद ही लोगो को Parle-Gluco की कमी सताने लगी थी | कंपनी को भी इसका एहसास हुआ कंपनी ने ये वादा किया की जैसे ही हालत ठीक होंगे प्रोडक्शन फिर से शुरू कर देंगे |

Parle-G की शुरुवात कब हुई? 
1982 वो साल था ज़ब Parle-Gluco का नाम बदल कर Parle-G कर दिया गया | कंपनी का नाम बदलने का कोई इरादा नहीं था | मगर ये उन्हें मजबूरन करना पड़ा | Gluco शब्द Glucose से बना था | Parle के पास इसका कोई कॉपीराइट नहीं था | इसी चीज का फ़ायदा उन बिस्कुट ब्रांड ने उठाया जो अभी तक Parle-Gluco के पीछे चल रहे थे |

देखते ही देखते मार्केट मे बहुत सारे gluco बिस्कुट आ गए हर कोई अपने बिस्कुट के नाम के पीछे Gluco या Glucose का इस्तेमाल करने लगा इसके कारण लोग Parle-Gluco और बाकि बिस्कुट के बिच मे फस गए | इसके कारण Parle-Gluco की सेल पर काफ़ी बुरा असर पड़ा

यही करण रहा की 1982 मे फैसला किया की अब वो अपने नाम से Gluco हटा कर सर्फ G रखेंगे | इसके साथ ही उन्होंने नाम बदल कर एक और नई Parle-G की सुरुवात की |

Parle-G को कौन से सन मे सबसे ज्यादा बेचा जाने वाला बिस्कुट घोषित किया गया? 
2003 मे Parle-G  को दुनिया मे सबसे ज्यादा बेचा जाने वाला बिस्कुट घोषित किया गया | और जैसे जैसे वक़्त बीतता गया Parle-G एक साम्राज्य की तरह बन गया |

Parle-G 2012 मे कितने करोड़ की सेल की थी? 
2012 मे ज़ब कंपनी ने बताया की सिर्फ बिस्कुट से ही उन्होंने करीब 5000 करोड़ की सेल की है तो हर कोई सुन कर हैरान हो गया | Parle-G भारत का पहला ऐसा ब्रांड था जिसने ये अकड़ा छुवा था |

Parle-G 2014 मे कौन से स्थान पर थी? 
2014 मे Parle-G को भारत का 42वा सबसे ज्यादा भरोसेमंद ब्रांड घोषित किया गया था |

Parle-G हर साल कितना बिस्कुट बनती है? 
आकड़ो की माने तो Parle-G हर साल 14600 करोड़ बिस्कुट बनती है |

Parle-G कितने स्टोर्स मे अपने बिस्कुट भेजते है? 
ये सभी बिस्कुट करीब 6 मिलियन स्टोर्स मे भेजे जाते है |

Parle-G हर साल कितना कमाती है? 
इसकी वजह से ही कंपनी आज 16 मिलियन डॉलर का रेवेन्यू कमा पति है |

Parle-G का मार्केट मे कितने प्रतिशत का कब्जा है? 
भारत मे glucose बिस्कुट के श्रेड़ी मे 70% बाजार पर Parle-G का कब्जा है | इसके बाद नंबर आता है Britannia ke tiger ka जिसने बाजार पर 17 से 18% का कब्जा जमा रखा है |

Parle-G की पैकिंग कैसे होती है? 
दोस्तों Parle-G बिस्कुट की एक अच्छी है की इसे देखते ही पहचाना जा सकता था | यह बिस्कुट पहले वैक्स कागज के पैकेट मे पैकिंग किया जाता था | लेकिन अभी कुछ सालो पहले इसे प्लास्टिक के पैकेट मे पक्किंग किया जा रहा है |

पैकेट मे छपी बच्ची कौन है? 
इसके अलावा पैकेट मे छपी बच्ची इस बिस्कुट की पहचान है | बिच मे सोशल मीडिया मे अफवाव उडी थी की इस पैकेट पर छपी छोटी बच्ची निरु देश पांडे है | जो की सरासर गलत है सच्चाई ये है की इस पैकेट पर छपी बच्ची एक इलस्ट्रेशन है जिसे 1960 मे एक आर्टिस्ट ने बनाया था |

दोस्तों उम्मीद करत हु आपको मेरा यह पोस्ट अच्छा लगा होगा | अपना बहुमूल्य समय देने के लिए धन्यवाद..........

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