Breaking

Thursday, 4 July 2019

Sardar udham singh biography in hindi || सरदार उधम सिंह की जीवनी || 21 साल बाद लिया था जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला

Sardar udham singh biography in hindi || सरदार उधम सिंह की जीवनी || 21 साल बाद लिया था जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला

दोस्तों आज मै बात करने जा रहा हु भारत के वीर सपूत अंग्रेजो की कायरता का भरपूर जवाब देने वाले शहीद-ए-आजम उधम सिंह की जिन्होंने जलियाँवाला बाघ नरसंहार के समय पंजाब के गवर्नर रहे माइकल ओ डायर को उसी के सरजमीन पर गोलियों से भून डाला और अपने 21 साल के संकल्प को पूरा करते हुए अपना जीवन देश के लिए न्योछावर कर दिया |

सरदार उधम सिंह की जीवनी 
सरदार उधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर 1899 को पंजाब के सुनाम नाम के एक गाँव मे हुआ था | पैदा होने के सिर्फ 2 साल बाद 1901 मे उनकी माँ की मृत्यु हो गई और फिर 8 साल की उम्र मे उन्होंने अपने पिता को भी खो दिया | जिसके बाद उन्हें और उनके बड़े भाई मुक्ता सिंह को अनाथआलय मे डाल दिया गया |उधम सिंह के बचपन का नाम शेर सिंह था | लेकिन अनाथआलय मे शिक्षा देकर उन्हें उधम सिंह का नाम दे दिया गया | आगे चलकर हाई स्कूल की परीक्षा पास करकर 1919 मे उन्होंने अनाथआलय को छोड़ दिया |

जलीयावाला बाग़ हत्या कांड 
13 अप्रैल 1919 को करीब 20 हजार स्थानिय लोगो ने अंग्रेजो के रॉलेट एक्ट के विरोध मे जलियाँवाला बाग़ मे एक विशाल सभा का आयोजन किया गया था | और वही पर उधम सिंह लोगो को पानी पिलाने के काम मे लगे हुए थे |

लेकिन तभी उस समय मे पंजाब के गवर्नर रहे माइकल ओ डायर को ज़ब इस बात का पता चला तो उन्होंने अपने सेना को बिना किसी पूर्व सुचना के शांति से बैठकर कर रहे सभा मे अंधाधुनधा  गोलिया चलाने का आदेश दे दिया |

हजारों लोगो की जाने गई 
जिसके बाद अंग्रेज सिपाहीयों ने लगातार 20 मिनट तक भारतीययों पर गोली चलाई जिसमे हजारों लोगो की जाने गई गोलियों से जो मारे गए वो तो अलग है लेकिन भगदड़ मे दबे जाने की वजह से सैकड़ो लोगो की जाने चली गई और ज़ब गोलिया चली तब जलियाँवाला बाग़ मे घुसने और बाहर निकलने के लिए सिर्फ एक ही रास्ता था |और चारो तरफ से वह ग्राउंड दीवारों से घिरा हुआ था | और उस मात्र छोटे से दरवाजे पर माइकल ओ डायर ने तोप लगा दी थी | और जो भी बाहर निकलने की कोशिश करता उसे तोप से उड़ा दिया जाता था |

भारतीययों ने कुए मे कूद कर जान दे दी 
ज़ब लोगो ने देखा की वे कही से भी बाहर नहीं निकला जा सकता तो वहा एक कुआँ था | और सभी भारतोयो ने सोचा की अंग्रेजो के हाथो मरने से अच्छा है की हम खुद ही अपनी जान दे दे फिर सभी भारतीययों ने उस कुएँ मे कूदकर अपनी जान दे दी कहा जाता है की आज भी उस कुएँ से पानी निकली तो पानी नहीं बल्कि खून निकलता है और उस कुएँ से लोगो के चीखने की आवाज सुनाई देती है |

इस कांड मे उधम सिंह की जान बच गई 
सौभाग्य से इस सभी कांड मे उधम सिंह की जान बच गई थी | उस समय वे करीब 20 साल के थे | और सिर्फ 20 साल के उम्र मे ही उन्होंने संकल्प लिया जिस कायर ने मेरे देश के नागरिकों को बेदरदी से मारा है | उस कायर को मै जिन्दा नहीं छोडूंगा और यही मेरे जीवन का आखरी संकल्प होगा |

गदर पार्टी के सदस्य बने 
आगे चल कर अपने संकल्प को पूरा करने के लिए वे 1924 मे गदर पार्टी मे शामिल हुए और भगद सिंह के पथ चिन्हो पर चलने लगे | फिर आगे चल कर उन्होंने बड़ई का भी काम किया और कुछ पैसे जुटाए ताकि वे जर्नल डायर को मरने के लिए हथियार खरीद सके |

उधम सिंह को जेल भी हुआ 
अपने मिशन को अंजाम लेने के लिए उन्होंने कई देशों की यात्रा भी की जिसमे उन्हें अवैध हथियार रखने के जुर्म मे 5 साल का जेल भी हुआ |

अपने संकल्प को पूरा करने के लिए लंदन गए 
जेल से छूटने के बाद वे अपने संकल्प को पूरा करने के लिए 1934 मे लंदन गए और वहा नाईट एल्डन कमर्सिअल रोड पर रहने लगे |

जहाँ पर उन्होंने 6 गोलियों की एक रिवाल्वर भी खरीदी लंदन मे रहते हुए उधम सिंह के पास बहुत सारे ऐसे मौक़े थे की वे जर्नल डायर को बड़े आराम से मार सके लेकिन नहीं उधम सिंह ने कहा की मे जर्नल डायर को ऐसे नहीं मार सकता जिसने मेरे भारत वासियो को बेदरदी से भारी सभा मे हत्या की है मे भी उसे कुछ इसी अंदाज मे मरूंगा |

जर्नल डायर की हत्या की 
आखिर कार 21 सालो बाद 13 मार्च 1940 मे वो मौका आ ही गया जहाँ लंदन के एक शहर लॉक्सटन हॉल मे जर्नल डायर के सम्मान मे एक कार्यक्रम चल रहा था |

जहाँ उधम सिंह एक किताब मे बंदूक छुपा के वहा पहुँचे और थोड़ी देर बैठने के बाद बड़े आराम से स्टेज की तरफ गए और लगातार 3 गोलिया चलाकर डायर को मार गिराया और मारने के बाद खुद को सरेंडर भी कर दिया |

दोस्तों उधम सिंह चाहते थे तो वहा से भाग सकते थे | लेकिन साहसी से डायर को मार गिराया और खुद को सरेंडर किया |

सरदार उधम सिंह को फासी की सजा दी गई 
कोर्ट मे ज़ब उधम सिंह से पूछा गया की तुम चाहे तो भाग सकते थे लेकिन भागे क्यू नहीं उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा मेरे फंसी चढ़ने से मेरी ही तरह हजारों उधम सिंह भारत मे जन्म लेंगे आखिर कार 31 जुलाई 1940 को यू के के जेल मे उन्हें फंसी हो गई |

दोस्तों उम्मीद करता हु आपको मेरा यह पोस्ट अच्छा लगा होगा अपना बहुमूल्य समय देने के लिए धन्यवाद,..........



No comments:

Post a Comment