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Thursday 27 June 2019

आखिर संडे को ही क्यू होता है सार्वजनिक अवकाश || sunday history in hindi



पुरे हफ्ते काम करने के बाद हम सभी को एक ही दिन का इंतजार रहता है वो भी sunday का क्यूकी sunday को सभी दफ्तर,स्कूल और कॉलेज सभी बंद रहते है|और दोस्तों sunday की बात करें तो इस दिन का इंतजार बच्चे से लेकर बूढ़े सभी को रहता है|इस दिन कोई आराम करता है तो कोई घूमने को जाता तो कोई अन्य गतिविधि करता है|लेकिन दोस्तों अपने कभी सोचा है कि आखिर sunday को ही सार्वजनिक अवकाश क्यू होता है|तो दोस्तों चलिए आज इस पोस्ट के जरिए हम जानने की कोशिश करते है कि आखिर sunday को ही सार्वजनिक अवकाश क्यू होता है

कहा से आया रविवार के छुट्टी का प्रवधान

दोस्तों हुआ यु की जब भारत मे ब्रिटिश शासन का राज था|तब सभी भारतीय एक गुलामो की जिंदगी जीते थे|और तब मिल मजदूरों को सातों दिन काम करना पड़ता था|और उन्हें कोई भी छुट्टी नहीं मिलता था|हर रविवार को ब्रिटिश अधिकारी चर्च जाकर प्राथना करते थे|और ब्रिटिश अधिकारी रविवार को छुट्टी के रूप मे मनाते थे|लेकिन मिल मजदूरों के लिए एसी कोई परंपरा नहीं थी|

उस समय श्री नारायण मेघा जी लोखंडे मिल मजदूरों के नेता थे|वे सभी मजदूरों के इस दुख को समझते थे की उन्हें भी पुरे हफ्ते मे एक दिन तो छुट्टी मिलना ही चाहिए|

श्री नारायण मेघा जी लोखंडे का जन्म

श्री नारायण मेघा जी लोखंडे का जन्म 1848 मे भारत के पुणे जिले के कानेश्वर के एक गरीब परिवार मे हुआ|उनके घर की आर्थिक स्थिति ठीक ना होने के कारण उन्होंने अपनी सिक्छा 10 वी तक ही की|आपको ऊपर तस्वीर मे जो दिख रहे है यही है श्री नारायण मेघा जी लोखंडे|

रविवार के अवकाश के लिए किया गया किया गया संघर्ष

श्री नारायण मेघा जी लोखंडे अपनी 10 वी की परीक्षा पास करने के बाद रेल्वे के डाक विभाग मे काम करना शुरू कर दिया|उस समय ब्रिटिश साशन का राज था|अंग्रेजो की नौकरी करते हुए लोखंडे को कभी भी साप्ताहिक छुट्टी नहीं मिलता था वे लगातार काम काम करते रहते थे|

फिर इसके बाद उन्होंने बॉम्बे टेक्सटाइल मिल मे बतौर स्टोर किप्पर काम करना शुरू किया|उन्होंने वहा देखा कि मिल के कई परिवार बंधुआँ मजदूर की तरह दिन रात काम कीए जा रहे है|उन्हें ना तो आराम के लिए छुट्टी दिया जाता था ना ही स्वाथ्य लाभ मिलता|और उन्हें उनके छमता से भी ज्यादा काम कराया जा रहा था|जिनका असर उनके शरीर पर पड़ रहा था|

दीन बंधु नामक अख़बार की स्थापना

लोखंडे एक साधारण स्टोर कीपर थे इसलिए वे जानते थे की उनकी बात सरकार तक नहीं पहुचाई जा सकती इसलिए उन्होंने 1880 मे दीन बंधु नामक अख़बार की स्थापना की|उनका लक्छ्य था की इस अख़बार के जरिए मील मालिको द्वारा मजदूरों पर हो रहे अत्याचार और श्रमिकों की परेशानी बयां करना था|वे इस दीन बंधु अख़बार मे मजदूरों की दयनीय स्थिति के बारे मे लिखने लगे|

बॉम्बे हैंड्स एसोसिएशन के नाम से ट्रेड यूनियन की स्थापना की

श्री नारायण मेघा जी लोखंडे ने 1884 मे बॉम्बे हैंड्स एसोसिएशन के नाम से ट्रेड यूनियन की स्थापना की और नारायण मेघा जी लोखंडे उसके अध्यक्ष भी बने|फिर 1881 मे पहली बार कारखाना अधिनियम मे बदलाव रखने की मांग रखी हलाकि उनके मांग को सरकार ने सीधा ख़ारिज कर दिया|फिर उसी साल लोखंडे ने देश की पहली श्रमिक सभा का आयोजन किया|

सरकार के सामने छुट्टी की मांग रखी गई

फिर लोखंडे ने मजदूरों के लिए रविवार के अवकाश की माँग को उठाया इसके साथ ही भोजन करने के लिए छुट्टी काम के घंटे निश्चित करने का प्रस्ताव काम के समय किसी तरह की दुर्घटना हो जाने की स्थिति मे कामगार को सवेतन छुट्टी और दुर्घटना के कारण किसी श्रमिक की मृत्यु हो जाने की स्थिति मे उसके परिवार को पेंशन मिलने के प्रस्ताव पर मुहर लगाई गई|इस सभी मांग को लेकर एक याचिका तैयार की गई जिसमे 5500 श्रमिको ने हस्ताक्षर किया|जैसे ही याचिका फैक्ट्री कमीशन के पास पहुंची मिल मालिको ने विरोध शुरू कर दिया|

फिर मील मालिको ने मील मे काम करने वाले मजदूरों को छमता से दुगना काम करा कर उन्हें पताड़ित किया जाने लगा|और मालिको के अत्याचार इतना अधिक बड़ गया की मालिको ने मजदूरों के परिवार परिवार के बच्चों तक को नहीं छोड़ा उन्हें भी काम मे झोक दिया गया|

आंदोलन की सुरुवत हुई 

जब लोखंडे ने देखा की उनकी याचिका सरकार ने नजरअंदाज कर दिया है तो उन्होंने आंदोलन छेड दिया जिसमे मजदूरों ने भी उनका साथ दिया|वे मजदूरों के हित के लिए देश के अलग अलग हिस्सों मे जाकर श्रमिकों के लिए सभाए की|

इसमें सबसे अहम सभा 1890 मे बॉम्बे के रेसक्रॉस मैदान मे आयोजित हुई|इस सभा मे बम्बई के अलावा आसपास के जिले से आए करीब 10 हजार मजदूरों ने हिस्सा लिया|

इस सभा से प्रभावित सभी मजदूरों ने मिलो मे काम करने से इंकार कर दिया|इस आंदोलन से बम्बई समेत सूरत,अहमदाबाद,सोलापुर, नागपुर की कई फैक्ट्री मे तले लग गए |मिलो मे तले लगने की वजह से मील मालिको को काफ़ी नुकसान का सामना करना पड़ा|

आखिर कार सरकार को मजदूरों के सामने झुकना ही पड़ा 

मजदूरों द्वारा हो रहे आंदोलन के आगे आखिर कार सरकार को झुकना ही पड़ा|इसके बाद मजदूरों को भोजन अवकाश मिलने लगा और काम के घंटे भी तय हो गए|लेकिन अभी भी साप्ताहिक छुट्टी पर मुहर लगना बाकि था|

अन्तः 7 साल के लम्बे संघर्ष के बाद ब्रिटिश सरकार ने 10 जून 1890 को रविवार की छुट्टी का दीन घोषित कर ही दिया|

हैरानी की बात ये है की भारत सरकार ने कभी भी इसके बारे मे कोई आदेश जारी नहीं किए है|अंतराष्ट्रीय मानकीय करण संस्थान (ISO) के अनुसार रविवार का दीन सप्ताह का आखरी दीन होता है इस बात को 1986 को लागु किया गया था|

हिन्दू क्लैंडर या हिन्दू पंचांग के अनुसार सप्ताह की सुरुवात रविवार से ही होती है|ये दीन सूर्य देवता का दीन होता है हिन्दू रीती रिवाज़ के अनुसार इस दीन सूर्य भगवान सहित सभी देवी देवताओ की पूजा करने का प्रावधान है| सप्ताह के पहले दीन एसे करने से सारा सप्ताह मन संत रहता है |

अधिकतर मुस्लिम देशों मे इबादत का दीन शुक्रवार को माना जाता है|इस कारण से वहा शुक्रवार को छुट्टी होती है |लेकिन ज्यादातर देशों मे रविवार को ही छुट्टी का प्रावधान है |

श्री नारायण जी लोखंडे को भारत सरकार द्वारा सम्मान दिया गया

भारत सरकार ने साल 2005 मे लोखंडे के नाम से डाक टिकट जारी कर उन्हें सम्मान दिया|सरकारी दस्तावेज पर नजर डाले तो पता चलता है की लोखंडे ने रविवार का अवकाश मजदूरों के लिए माँगा था|ताकि वे एक दीन अपने परिवार और देश की सेवा कर सके |

दोस्तों ये था रविवार के छुट्टी का इतिहास उम्मीद करता हु आपको अच्छा लगा होगा अपना बहुमूल्य समय देने के लिए धन्यवाद ..........

दोस्तों आपको मेरा ये पोस्ट कैसा लगा कमेंट मे बताए और अच्छा लगा तो लाइक करे और अभी हमें फ़ॉलो कर लीजिये|


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