History of indian railway in hindi || भारतीय रेलवे का इतिहास || INDIAN RAILWAY
दोस्तों अंग्रेजो ने आज से कईयों साल पहले भारत मे व्यापार करने के इरादे से कदम रखा था | लेकिन उन्हें एक ऐसा देश दिखा जहाँ पर वो आसानी से राज कर सकते थे | और फिर इसी कड़ी मे उन्होंने भारत की संपत्ति को लूटने के लिए रेलवे का भी निर्माण किया | लेकिन कौन जनता था की अंदर से किया जाने वाला यह विकास आगे चलकर लोगो की लाइफलाइन बन जाएगी | तो दोस्तों इस पोस्ट के जरिये हम रेलवे के इतिहास को कम शब्दो मे जानने की कोशिश करेंगे |
भारत मे पहली बार रेलवे का प्रस्ताव रखा गया |
तो दोस्तों भारत मे रेलवे की कहानी शुरू होती है 1832 से ज़ब मद्रास मे पहली बार रेलवे लाइन बिछाने का प्रस्ताव रखा गया था |
भारत मे पहली बार ट्रैन चलाई गई |
और फिर भारत की पहली ट्रैन 1837 मे तमिलनाडु के रेडहिल से चिंताड्रिपतके बिच चलाई गई हालांकि ये एक माल गाड़ी थी जिसे की बिल्डिंग बनाने मे ग्रेनाइट दोहने का इस्तेमाल किया जाता था | और फिर आगे चलकर 1845 मे गोदावरी नदी के उप्पर एक डैम बनाया जाने वाला था जिसके लिए गोदावरी डैम कंस्ट्रक्शन रेलवे बनाई गई और यह ट्रैन डैम बनाने के इस्तेमाल मे लाई जाने वाली पत्थर की सप्लाई करती थी हालांकि अभी तक रेल्वे का इस्तेमाल भारत मे सिर्फ माल दोहाने के लिए किया गया था |
पैसेंजर ट्रैन की आवाज़ उठी
लेकिन 1850 के बाद से पैसेनजर ट्रैन की शुरुआत की भी आवाज उठने लगी |
भारत की पहली पैसेंजर ट्रैन चली
इस तरह से भारत की पहली पैसेनजर ट्रैन 13 अप्रैल 1853 मे बोरीबंदर से थाने के बिच चली जिसमे करीब 400 यात्री 14 ट्रैन के डिब्बे मे सवार थे | इन डिब्बो को खींचने लिए 3 स्टीम इंजन लगाए गए थे | जिनके नाम थे साहिब,सिद्ध और सुल्तान साथ ही इस ट्रैन ने पहली बार 34 किलोमीटर की दुरी तय की थी |बोरीबंदर से थाने के बिच चलाए जाने वाले इस ट्रैन की लाइन को 1854 मे कल्याण तक कर दिया गया |
उल्लास नदी पर पहला पुल बना
और इसी तरह से उल्लास नदी पर भारतीय ट्रैन का पहला पुल बना और फिर आगे चल कर रेलवे के निर्माण मे काफ़ी तेजी आई
देश के विकास का हवाला देखकर अंग्रेज भारत को लूट रहे थे
इसके बाद ईस्ट इंडिया और साउथ इंडिया मे भी रेल की पटरी बिछाए गए और अब तक भारत के लोग आसानी से सफर कर सकते थे | वही अंग्रेजो को कोई भी समान किसी भी जगह मे भेजनें मे परेशानी नहीं होती थी | और फिर इसी तरह देश के विकास का हवाला देखकर अंग्रेज भारत को लूट रहे थे |
ट्रैन के डिब्बों मे लाइट लगाने की मांग उठी
और आपको जानकर हैरानी होंगी 1897 तक पैसेंजर ट्रैन के डिब्बो मे लाइट नहीं हुआ करती थी | इसीलिए रात लोगो को अंधेरे मे ही बिताना पड़ता था | लेकिन पहली बार 1897 मे पैसेंजर ट्रैन के डिब्बो मे लाइट लगाने का काम शुरुआत किया गया और फिर आगे चलकर 1909 के आस पास भारतीय रेल मे टॉयलेट बंनाने का भी काम किया गया |
रेल की पटरीयों ने क्रन्तिकारीयों की गतिविधि मे भी तेजी ला दी थी
दोस्तों अब तक वह समय आ चूका था ज़ब भारत अपने आजादी के लिए जंग लड़ रहा था और फिर भारत मे बिछी रेल की पटरीयों ने क्रन्तिकारीयों की गतिविधि मे भी तेजी ला दी थी | और ट्रैन मे सफर करके भारत के लोग कही पर भी इकट्ठा हो सकते थे | और उस तरह से वीर जवानो के संघर्ष की वजह से अंग्रेजो का खेल बिलकुल उल्टा पड़ गया |
यहां पर उन्होंने अपने फ़ायदे के लिए रेलवे का निर्माण किया था | वही भारत की आजादी मे इस रेलवे ने अहम भूमिका अदा की और फिर हजारों वीर सपूतो की संघर्ष की वजह से 15 अगस्त 1947 को हमें आजादी मिली |
फिर आजादी के बाद से भारतीय भारतीय रेलवे को अच्छी तरह से मैनेज करने के लिए अलग अलग जोन मे बाट दिया गया |
ट्रैन मे पंखे और लाइट लगाने अनिवार्य कर दिए गए
और फिर इसके बाद 1951 मे हर पैसेंजर ट्रैन मे पंखे और लाइट लगाने अनिवार्य कर दिए गए |
ट्रैन मे स्लीपर क्लास की सुरवात की गई
और फिर 1956 आते आते ट्रैन पर स्लीपर क्लास की भी शुरुवात हो गई थी |
आरक्षण और कंप्यूटर टिकट की शुरुआत की गई
और फिर आगे चल कर और कई सारे बदलाव के बाद 1986 मे दिल्ली मे पहली बार आरक्षण और कंप्यूटर टिकट की शुरुआत हो गई |
शताब्दी एक्सप्रेस की भी शुरुआत की गई
1988 मे भारतीय रेल की कोहिनूर कही जाने वाली ट्रैन शताब्दी एक्सप्रेस की भी शुरुआत कर दी गई | यह तो पहले नई दिल्ली से झाँसी तक की थी लेकिन बाद मे इसे बड़ा कर भोपाल तक कर दिया गया |
ऑनलाइन टिकट बुकिंग की शुरुआत की
और फिर आगे चल कर पहली बार 3 अगस्त 2002 को भारतीय रेल ने ऑनलाइन टिकट बुकिंग की शुरुआत की जिसके जरिए आज के समय मे सबसे ज्यादा बुकिंग होती है
भारतीय रेलवे ने भोलू गॉर्ड का आनावरना किया
भारतीय रेल के 150 साल पूरा होने के दौरान साल 16 अप्रैल 2002 को बंगलौर मे भोलू गॉर्ड का आनावरना किया | बाद मे साल 2003 मे भारतीय रेल ने भोलू को शुभनकर के रूप मे अधिकृत कर लिया गया
दोस्तों आज के समय मे भारतीय रेलवे अमेरिका,चीन, और रसिया के बाद दुनिया का सबसे बड़ा रेलवे नेटवर्क है |
दोस्तों उम्मीद करता हु आपको मेरा यह पोस्ट अच्छा लगा होगा अपना बहुमूल्य समय देने के लिए धन्यवाद.....
दोस्तों अंग्रेजो ने आज से कईयों साल पहले भारत मे व्यापार करने के इरादे से कदम रखा था | लेकिन उन्हें एक ऐसा देश दिखा जहाँ पर वो आसानी से राज कर सकते थे | और फिर इसी कड़ी मे उन्होंने भारत की संपत्ति को लूटने के लिए रेलवे का भी निर्माण किया | लेकिन कौन जनता था की अंदर से किया जाने वाला यह विकास आगे चलकर लोगो की लाइफलाइन बन जाएगी | तो दोस्तों इस पोस्ट के जरिये हम रेलवे के इतिहास को कम शब्दो मे जानने की कोशिश करेंगे |
भारत मे पहली बार रेलवे का प्रस्ताव रखा गया |
तो दोस्तों भारत मे रेलवे की कहानी शुरू होती है 1832 से ज़ब मद्रास मे पहली बार रेलवे लाइन बिछाने का प्रस्ताव रखा गया था |
भारत मे पहली बार ट्रैन चलाई गई |
और फिर भारत की पहली ट्रैन 1837 मे तमिलनाडु के रेडहिल से चिंताड्रिपतके बिच चलाई गई हालांकि ये एक माल गाड़ी थी जिसे की बिल्डिंग बनाने मे ग्रेनाइट दोहने का इस्तेमाल किया जाता था | और फिर आगे चलकर 1845 मे गोदावरी नदी के उप्पर एक डैम बनाया जाने वाला था जिसके लिए गोदावरी डैम कंस्ट्रक्शन रेलवे बनाई गई और यह ट्रैन डैम बनाने के इस्तेमाल मे लाई जाने वाली पत्थर की सप्लाई करती थी हालांकि अभी तक रेल्वे का इस्तेमाल भारत मे सिर्फ माल दोहाने के लिए किया गया था |
पैसेंजर ट्रैन की आवाज़ उठी
लेकिन 1850 के बाद से पैसेनजर ट्रैन की शुरुआत की भी आवाज उठने लगी |
भारत की पहली पैसेंजर ट्रैन चली
इस तरह से भारत की पहली पैसेनजर ट्रैन 13 अप्रैल 1853 मे बोरीबंदर से थाने के बिच चली जिसमे करीब 400 यात्री 14 ट्रैन के डिब्बे मे सवार थे | इन डिब्बो को खींचने लिए 3 स्टीम इंजन लगाए गए थे | जिनके नाम थे साहिब,सिद्ध और सुल्तान साथ ही इस ट्रैन ने पहली बार 34 किलोमीटर की दुरी तय की थी |बोरीबंदर से थाने के बिच चलाए जाने वाले इस ट्रैन की लाइन को 1854 मे कल्याण तक कर दिया गया |
उल्लास नदी पर पहला पुल बना
और इसी तरह से उल्लास नदी पर भारतीय ट्रैन का पहला पुल बना और फिर आगे चल कर रेलवे के निर्माण मे काफ़ी तेजी आई
देश के विकास का हवाला देखकर अंग्रेज भारत को लूट रहे थे
इसके बाद ईस्ट इंडिया और साउथ इंडिया मे भी रेल की पटरी बिछाए गए और अब तक भारत के लोग आसानी से सफर कर सकते थे | वही अंग्रेजो को कोई भी समान किसी भी जगह मे भेजनें मे परेशानी नहीं होती थी | और फिर इसी तरह देश के विकास का हवाला देखकर अंग्रेज भारत को लूट रहे थे |
ट्रैन के डिब्बों मे लाइट लगाने की मांग उठी
और आपको जानकर हैरानी होंगी 1897 तक पैसेंजर ट्रैन के डिब्बो मे लाइट नहीं हुआ करती थी | इसीलिए रात लोगो को अंधेरे मे ही बिताना पड़ता था | लेकिन पहली बार 1897 मे पैसेंजर ट्रैन के डिब्बो मे लाइट लगाने का काम शुरुआत किया गया और फिर आगे चलकर 1909 के आस पास भारतीय रेल मे टॉयलेट बंनाने का भी काम किया गया |
रेल की पटरीयों ने क्रन्तिकारीयों की गतिविधि मे भी तेजी ला दी थी
दोस्तों अब तक वह समय आ चूका था ज़ब भारत अपने आजादी के लिए जंग लड़ रहा था और फिर भारत मे बिछी रेल की पटरीयों ने क्रन्तिकारीयों की गतिविधि मे भी तेजी ला दी थी | और ट्रैन मे सफर करके भारत के लोग कही पर भी इकट्ठा हो सकते थे | और उस तरह से वीर जवानो के संघर्ष की वजह से अंग्रेजो का खेल बिलकुल उल्टा पड़ गया |
यहां पर उन्होंने अपने फ़ायदे के लिए रेलवे का निर्माण किया था | वही भारत की आजादी मे इस रेलवे ने अहम भूमिका अदा की और फिर हजारों वीर सपूतो की संघर्ष की वजह से 15 अगस्त 1947 को हमें आजादी मिली |
फिर आजादी के बाद से भारतीय भारतीय रेलवे को अच्छी तरह से मैनेज करने के लिए अलग अलग जोन मे बाट दिया गया |
ट्रैन मे पंखे और लाइट लगाने अनिवार्य कर दिए गए
और फिर इसके बाद 1951 मे हर पैसेंजर ट्रैन मे पंखे और लाइट लगाने अनिवार्य कर दिए गए |
ट्रैन मे स्लीपर क्लास की सुरवात की गई
और फिर 1956 आते आते ट्रैन पर स्लीपर क्लास की भी शुरुवात हो गई थी |
आरक्षण और कंप्यूटर टिकट की शुरुआत की गई
और फिर आगे चल कर और कई सारे बदलाव के बाद 1986 मे दिल्ली मे पहली बार आरक्षण और कंप्यूटर टिकट की शुरुआत हो गई |
शताब्दी एक्सप्रेस की भी शुरुआत की गई
1988 मे भारतीय रेल की कोहिनूर कही जाने वाली ट्रैन शताब्दी एक्सप्रेस की भी शुरुआत कर दी गई | यह तो पहले नई दिल्ली से झाँसी तक की थी लेकिन बाद मे इसे बड़ा कर भोपाल तक कर दिया गया |
ऑनलाइन टिकट बुकिंग की शुरुआत की
और फिर आगे चल कर पहली बार 3 अगस्त 2002 को भारतीय रेल ने ऑनलाइन टिकट बुकिंग की शुरुआत की जिसके जरिए आज के समय मे सबसे ज्यादा बुकिंग होती है
भारतीय रेलवे ने भोलू गॉर्ड का आनावरना किया
भारतीय रेल के 150 साल पूरा होने के दौरान साल 16 अप्रैल 2002 को बंगलौर मे भोलू गॉर्ड का आनावरना किया | बाद मे साल 2003 मे भारतीय रेल ने भोलू को शुभनकर के रूप मे अधिकृत कर लिया गया
दोस्तों आज के समय मे भारतीय रेलवे अमेरिका,चीन, और रसिया के बाद दुनिया का सबसे बड़ा रेलवे नेटवर्क है |
दोस्तों उम्मीद करता हु आपको मेरा यह पोस्ट अच्छा लगा होगा अपना बहुमूल्य समय देने के लिए धन्यवाद.....
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